प्रश्न (८)
प्रश्न (८) : सद्गुरु प्राप्ति के पश्चात क्या कर्मबंधन रहता हैं ?
प.पू. महर्षि पुनिताचारीजी महाराज:
शुभ या अशुभ सभी प्रकार की क्रियाओ को " कर्म " कहा जाता है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है। उसमें से कभी भी छुटकारा नहीं मिल सकता । उपनिषदों में लिखा है - " ना भुक्तये क्षियते कर्म:।" (भोग के बिना कर्म का क्षय नहीं होता।) दर्शनशास्त्र में कर्मों को तीन भागों में विभाजित किया गया है।
(१) क्रियमाण कर्म: जन्म से लेकर मृत्यु तक किये जानेवाले सभी कर्मों को " क्रियमाण कर्म " कहा जाता है। प्रत्येक मनुष्य को इस क्रियमाण कर्मों के फल भुगतने ही पड़ते है।
(२) संचित कर्म: क्रियमाण कर्म के परिणाम आमतौर पर कर्ता को तुरंत मिल जाते है , और इस तरह से वे भोग लिये जाते है ; लेकिन कुछ कर्म ऐसे होते हैं, जो बिना भोगे रह जाते है। जिसका परिणाम तुरंत नहीं मिलता। लेकिन समय परिपक्व होने पर मिलता है। ऐसा समय वर्तमान जीवन में आ सकता है, अथवा भविष्य में किसी भी जीवन में आ सकता है। ऐसे कर्मों को " संचित कर्म " कहा जाता है।
(३) प्रारब्ध कर्म : पिछले जन्मों के जो संचित कर्म वर्तमान समय में फल देने के लिए परिपक्व हो चुके हैं, उसे " प्रारब्ध कर्म " कहा जाता है ।
कर्मों के इस सिद्धांत पर ही पुनर्जन्म का सिद्धांत आधारित है। पूर्व जन्मों में किए गए कर्मों के फलस्वरूप ही, इस जन्म के सुख -दु:ख निर्धारित होते है। आदिगुरु शंकराचार्यने लिखा है -
पुनरपि जननं पुनरपि मरणम्,
पुनरपि जननी जठरे शयनम् ।
इह संसारे बहु दुस्तारे,
कृपया पारे पाहि मुरारे ।।
भज गोविंदम्
बार - बार जन्म लेना, बार - बार मरना, मां के गर्भ में बार बार पड़े रहना , संसार की इस प्रक्रिया को पार करना बहुत कठिन है ; अर्थात्, आवागमन के चक्र से छूटना बहुत कठिन है। हे प्रभु ! दया करो, दया करो और मेरी रक्षा करो ।
सद्गुरु ज्ञान स्वरूप है; और जो ज्ञान है वही मुक्ति भी है। सद्गुरु की प्राप्ति के पश्चात क्रियमाण और संचित कर्मों का नाश हो जाता है ; सिर्फ प्रारब्ध कर्मों को भोगना बाकी रह जाता है। सद्गुरु की प्राप्ति होते ही साधक जीवनमुक्त की स्थिति में आ जाता है। यह स्थिति केवल इसलिए ही होती है कि, प्रारब्ध कर्म का क्षय हो जाए । जीवमुक्त स्थिति में साधक को देहाध्यास नहीं होता। जीवनमुक्त स्थिति में संत के शरीर पर घाव पड़े हो और उन घावों में कीड़े भी पड़े हो फिर भी वे निजानंद की स्थिति में मस्त रहते हैं। उसका रहस्य यही है कि, उन्हें अपने शरीर का ख्याल ही नहीं रहता है ।
pathpradipika
QA
sukh
shanti
kasht
Mukti
MahaMantra Drashta P.P. Maharshi Punitachariji Maharaj
Hari Om Tatsat Jai Guru Datta
Mantra for mental peace