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प्रश्न (११)

प्रश्न (११) : माला में १०८ मनके क्यों होते हैं?

प.पू. महर्षि पुनिताचारीजी महाराज:

वैसे तो माला २७ या ५० मनकों की भी होती है । लेकिन ज्यादातर १०८ मनकों की माला का उपयोग किया जाता है । साधना की उच्च कक्षा पर पहुंच जाने पर अक्सर जप करने के लिए माला का उपयोग होता ही नहीं है । क्योंकि उस स्थिति में श्वास-प्रश्वास के साथ ही नाम जप होता रहता है, इसलिए इस जप को अजपा-जप कहते है। एक बात तो बहुत प्रचलित है कि मनुष्य एक दिन में २१,६०० बार सांस लेता है। माला से किए गए जाप को अजपा-जप में परिवर्तित करने के लिए, माला के मनकों की संख्या २१,६०० के कुछ अंश जितनी ली जाती है । यह संख्या १०० या १०८ की हो सकती है। माला के मनके फिराते समय शायद भूल हो सकती है । यदि माला में १०० मनके हों तो भूल होने पर जप संख्या को निश्चित करने में मुश्किल हो सकती है । यदि १०८ मनके हों तो ८ मनके की संख्या भूल चुक के लिए रखी जाती है, और एक माला - जप की संख्या १०० मानी जाती है । इस प्रकार से जप की संख्या आसानी से निश्चित की जा सकती है ।

शास्त्रों में परब्रह्म परमेश्वर को एक की संज्ञा दी गई है । क्योंकि, परमेश्वर एक ही है, अद्वितीय है अर्थात् उनके जैसा कोई दूसरा है ही नहीं । माया अर्थात् प्रकृति को आठ की संज्ञा दी गई है । क्योंकि प्रकृति आठ धातुओं से बनी हुई है । आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, मन, बुद्धि और जीव। परमेश्वर और प्रकृति के बीच अंतर है, और उस अंतर को शून्य के द्वारा दर्शाया जाता है । ईश्वर से मिलने के लिए इस अंतर को प्रकृति के द्वारा सफलतापूर्वक पार किया जाए यह आवश्यक है, इस प्रकार से कार्य की सिद्धि के लिए १०८ की संख्या को महत्वपूर्ण माना गया है ।


~प.पू. महर्षि पुनिताचारीजी महाराज,
गिरनार साधना आश्रम, जूनागढ़

॥ हरि ॐ तत्सत् जय गुरुदत्त ॥
(प.पू. पुनिताचारीजी महाराज की ४५ साल की कठोर तपस्या के फल स्वरुप उन्हें भगवान दत्तात्रेय से साधको के आध्यात्मिक उथ्थान और मानसिक शांति के लिए प्राप्त महामंत्र)



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