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प्रश्न (३)

प्रश्न (३) : गुरु किसे कहते हैं ? गुरु और शिक्षक समानार्थी शब्द नहीं हैं ?

प.पू. महर्षि पुनिताचारीजी महाराज:

दृष्टान्तो नैव दष्टस्त्रिभुवनजठरे सदगुरोर्ज्ञानदातुः
स्पर्शश्चेत्तत्र कलप्य: स नयति यदहो स्वह्रुतामश्मसारम् ।
न स्पर्शत्वं तथापि श्रितचरगुणयुगे सदगुरुः स्वीयशिष्ये
स्वीयं साम्यं विधते भवति निरुपमस्तेवालौकिकोऽपि ।।

गुरु के विषय में कुछ भी कहना मुश्किल है। फिर भी श्रद्धा, विश्वास और आदरभाव से गुरु और सद्गुरु के विषय में कुछ सोचे और लिखे तो मन शुद्ध और पवित्र होता है। इस त्रिभुवन में ज्ञान के दाता जो सद्गुरु हैं, उनकी विश्व की किसी भी वस्तु से तुलना करना संभव नहीं है। जैसे कि सद्गुरु की तुलना पारसमणि के साथ नहीं की जा सकती क्योंकि पारसमणि तो स्पर्श से लोहे को सोना बना देता है। वह अपने जैसा यानि कि पारस नहीं बनाता। परंतु सद्गुरु तो सद्शिष्य को स्पर्श करें ना करें, संकल्प मात्र से अपना स्वरूप दे देते हैं। यानि कि अपने जैसा बना देते हैं। इसलिए इस जगत में सद्गुरु की कोई उपमा नहीं है।

गुरु और शिक्षक एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द हैं। शिक्षक विद्यार्थी या जिज्ञासु को शब्दबोध के द्वारा शिक्षण देकर विवेक उत्पन्न करवा देता हैं, और आधारशिला रखते हैं। जिसके आधार पर विद्यार्थी-जिज्ञासु किसी योग्य दीक्षागुरु को प्राप्त करके साधनामार्ग पर आगे बढ़ते रहते हैं।


~प.पू. महर्षि पुनिताचारीजी महाराज,
गिरनार साधना आश्रम, जूनागढ़

॥ हरि ॐ तत्सत् जय गुरुदत्त ॥
(प.पू. पुनिताचारीजी महाराज की ४५ साल की कठोर तपस्या के फल स्वरुप उन्हें भगवान दत्तात्रेय से साधको के आध्यात्मिक उथ्थान और मानसिक शांति के लिए प्राप्त महामंत्र )



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