प्रश्न (७)
प्रश्न (७) : प्रतिमाओं और छबियों में सद्गुरु दत्तात्रेय के तीन मुख, विभिन्न शस्त्रों के लिए छ: हाथ, एक गाय और चार कुत्ते दिखाए जाते है इन सबका क्या अर्थ है ?
प.पू. महर्षि पुनिताचारीजी महाराज:
सृष्टि के क्रम के अनुसार, शुद्ध और दिव्य माया से संयुक्त होकर परब्रह्म परमेश्वर, ब्रह्मा के रूप में सृष्टि का सर्जन करते है, भगवान विष्णु के रूप में सृष्टि का पालन करते है और शिवजी के रूप में सृष्टि का संहार करते है । सद्गुरु दत्तात्रेय में ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीनों की विशेषताओ का समन्वय है; लेकिन साथ ही वे तीनों से परे भी हैं। क्योंकि आत्म स्वरूप का ज्ञान सिर्फ सद्गुरु के माध्यम से ही प्राप्त हो सकता है। वैसे तो सद्गुरु दत्तात्रेय भगवान विष्णु के अवतार है, लेकिन ब्रह्मा और शिव की शक्तियों से युक्त है । इसलिए तीनों के मुख दिखाए जाते हैं । महापुरुषों का कहना हैं कि - सृष्टि के सर्जन, पालन और संहार के लिए सत्त्व, रजस् और तमस् इन तीनों गुणों की विषमता और समता को कारण माना जाता है । भगवान विष्णु सत्त्व प्रधान है, ब्रह्मा राजस् प्रधान है जबकि शिव तामस् प्रधान है ।
विषमता की स्थिति उत्पन्न होने पर सृष्टि का सर्जन होता है, और प्रलय में समानता की स्थिति आ जाती है । इन तीनों गुणों का भिन्न-भिन्न स्थिति में संमिश्रण होने से भिन्न-भिन्न पदार्थ बनते है । सत्त्व प्रधान होते हुए भी भगवान दत्तात्रेय रजस् और तामस् गुणों से युक्त है । सद्गुरु दत्त की एकमुखी प्रतिमा या छबि बहुत ही कम देखने में आती है ।
सद्गुरु दत्तात्रेय के पांच हाथों में क्रमशः डमरू, शंख, त्रिशूल, सुदर्शनचक्र और कमंडल है । जबकि छट्ठा हाथ अभय प्रदान करने की मुद्रा में रहता है । डमरू और त्रिशूल भगवान शिव के हाथों में है । डमरू के नाद को ब्रह्म का प्रतीक माना जाता है। (सृष्टि की उत्पत्ति नाद ब्रह्म से हुई मानी जाती है।) जबकि त्रिशूल तीन प्रकार के दुःखों - आधिदैहिक, आधिदैविक और आधिभौतिक दूर करने का तथा सृष्टि के विनाश का प्रतिक है । कमंडल और शंख ब्रह्माजी के हाथ में है । शंख दुराचारी शक्तियों पर विजय और सतत आगे बढ़ते रहने का प्रतिक है; तथा कमंडल सृष्टि की उत्पत्ति और सर्जन का प्रतिक है, और सभी प्रकार के ज्ञान का स्रोत है । चक्र और अभयमुद्रा भगवान विष्णु के हाथों में है । चक्र दुराचारीओं के नाश के लिए है और अभयमुद्रा मानव मात्र को क्षमा करने के उद्देश्य से है।
गाय क्षमा, सहनशीलता एवं प्राणीमात्र के कल्याण की भावना का प्रतिक है । वह सबकुछ सहन करके सबको क्षमा करके दूध देती है । चारों कुत्ते ईमानदारी, निष्ठा, श्रद्धा, विश्वास के प्रतिक है। कभी-कभी उन्हें धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के प्रतिक भी माना जाता है । कोई-कोई व्यक्ति उन्हें ज्ञान के आदिभंडार वेदों के रूप भी कहते हैं। क्योंकि सद्गुरु दत्तात्रेय को ज्ञान का अवतार माना जाता है ।
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Mukti
MahaMantra Drashta P.P. Maharshi Punitachariji Maharaj
Hari Om Tatsat Jai Guru Datta
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