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प्रश्र (१७)

प्रश्र (१७) : अनुष्ठान के दौरान यदि यात्रा पर जाना हो, तो क्या वहां जप हो सकता है ? धूप-दीप उपलब्ध न हो तो क्या करना चाहिए ?

प.पू. महर्षि पुनिताचारीजी महाराज:

इस मंत्र के अनुष्ठान में कोई बंधन नहीं है । किसी भी स्थान पर यह संख्या पूरी हो सकती है । प्रवास या भ्रमण के दौरान ट्रेन या बस में मानसिक जप हो सकता है। स्नान न किया हो फिर भी मंत्र का जप हो सकता है । धूप-दीप और नैवैद्य की आवश्यकता यात्रा में होती नहीं है, लेकिन अपने स्थान में धूप-दीप का प्रबंध और नैवैद्य का प्रबंध हो सके तो उत्तम है और यदि न हो सके तो भी जप तो चालु रखना चाहिए ।


~प.पू. महर्षि पुनिताचारीजी महाराज,
गिरनार साधना आश्रम, जूनागढ़

॥ हरि ॐ तत्सत् जय गुरुदत्त ॥
(प.पू. पुनिताचारीजी महाराज की ४५ साल की कठोर तपस्या के फल स्वरुप उन्हें भगवान दत्तात्रेय से साधको के आध्यात्मिक उथ्थान और मानसिक शांति के लिए प्राप्त महामंत्र)



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