प्रश्न (२)
प्रश्न (२) : मन को किस प्रकार से समझा बुझाकर अपने अनुरूप बनाया जा सकता है ?
प.पू. महर्षि पुनिताचारीजी महाराज:
यह कार्य जीवन का बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है। साथ में उतना ही कठिन कार्य भी है। ऋषियों और महर्षियों के कथनों के अनुसार, किसी योग्य गुरु अथवा महापुरुष के मार्गदर्शन में योग साधना करने से यह संभव होता है। योग साधना शब्द योग और साधना दो अलग-अलग शब्दों से बना है। योग शब्द की मूल धातु 'युज्' है, जिसका अर्थ जोड़ना अथवा मिलना होता है। आध्यात्मिक क्षेत्र में इसका उपयोग आत्मा और परमात्मा का मिलन अथवा एकीकरण के लिए किया जाता है। साधना शब्द की मूल धातु 'साधु' है, जिसका अर्थ होता है प्राप्त करना अथवा पाना। आध्यात्मिक क्षेत्रों में इसका प्रयोग ऐसी वस्तु प्राप्त करने के लिए होता है, जिसे प्राप्त करने के बाद और कुछ प्राप्त करना बाकी नहीं रहता है। इसलिए, योग साधना का अर्थ 'आत्मा और परमात्मा का मिलन' ऐसा होता है। सफलतापूर्वक आत्मा और परमात्मा के मिलन के लिए शास्त्रों में कई विधियां बताई गई हैं, जिनमें आत्मज्ञान, परमेश्वर के प्रति पूर्ण शरणागति, अनासक्त भाव, हठयोग, जपयोग आदि मुख्य हैं। लेकिन साथ ही यह भी कहा गया है कि योग्य गुरु के मार्गदर्शन के बिना सफलता प्राप्त नहीं होती है। यदि योग्य गुरु का मार्गदर्शन नहीं मिलता है तो कभी-कभी योग साधना में असाध्य दुःख या बड़ा अवरोध उपस्थित हो जाता है।
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MahaMantra Drashta P.P. Maharshi Punitachariji Maharaj
Hari Om Tatsat Jai Guru Datta
Mantra for mental peace