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प्रश्न (१०)

प्रश्न (१०) : साधना और उपासना में फल की प्राप्ति के लिए किसी भी मंत्र के जप के विषय में क्या क्या सावधानियां रखनी चाहिए ?

प.पू. महर्षि पुनिताचारीजी महाराज:

गुरु या किसी भी महापुरुष से प्राप्त मंत्र का जप पूर्ण श्रद्धा और विश्वासपूर्वक करने से सफलता मिलती है । मंत्र का जप चाहिए उतनी मनोकामना पूर्ण नहीं करता, इसीलिए किसी योग्य मार्गदर्शक से संपूर्ण विधि- विधान के साथ मंत्र ग्रहण कर के जाप करना चाहिए । किसी भी मंत्र के जप या साधना उपासना के लिए पर्वत का शिखर, नदी का तट, सिंधु तट, कोई भी देवस्थान, श्मशान, बीली का वृक्ष, गौशाला, तुलसी का वन, गुफा आदि स्थान ज्यादा फलदायी होते है । जप करने के लिए आसन के स्थान पर नीचे दर्भासन, उसके उपर कंबल, उसके उपर रेशमी कपड़े की गद्दी या रेशमी वस्त्र बिछाकर बैठना चाहिए । कुछ साधु-संन्यासी और त्यागी मृगचर्म का उपयोग करते है ।

जप अनुष्ठान में प्रात: स्नान आदि नित्य कर्म करके घी या तेल का दीपक जलाकर, शरीर को अनुकूल हो तो धूप भी करके उत्तराभिमुख या पूर्वाभिमुख बैठकर जाप करने चाहिए । रात्रि में भी उत्तरामुखी जप हो सकते है । घर में अनुकूलता और सुविधा न हो तो किसी भी दिशा में मुख करके निष्काम उपासना की जा सकती है । सकाम उपासना के लिए आसन, दिशा, वस्र, माला और अमुक वस्तुओं का भोग तथा पुष्प आदि का वर्णन जो शास्त्रों में है उसके अनुसार करना चाहिए । जप की संख्या नित्य एक समान होनी चाहिए । दूसरे दिन जप की संख्या बढ़ाई जा सकती है, और यह वृद्धिक्रम चालु रखना चाहिए । संक्षेप में बढ़ाया जा सकता है लेकिन घटाया नहीं जा सकता । जप साधना में मानसिक जप श्रेष्ठ है । परन्तु मानसिक जप से शुरूआत में मन जहां-तहां भागता है, इसलिए शुरूआत में वाचिक यानि कि बोलकर जप करना उत्तम है । फिर बाद में वह धीरे-धीरे उपांशु और मानसिक में बदल जाता है । जप करते समय मन यहां वहां भागे, षड्विकारों की ओर दौड़े, फिर भी धबराना नहीं चाहिए और जप चालु रखना चाहिए । धीरे-धीरे विचार शुद्ध बनते हैं, वृत्तियां अंतर्मुख होती है और स्थिरता प्रदान करती है । इसलिए मन लगाकर और श्रद्धा पूर्वक सावधानी से जप करना चाहिए ।

माला का जप गौमुखी के अंदर करना हितावह है । माला जमीन को स्पर्श न करें यह ध्यान रखना जरूरी है । जप करते-करते माला के अंतिम मनके सुमेरु के पास पहुंचे तब उसे पार नहीं करना चाहिए और उसे माला फिराने की उल्टी दिशा में पलटकर जप चालु रखना चाहिए। जप में रुद्राक्ष, तुलसी, रतांजलि, स्फटिक आदि किसी भी माला का उपयोग किया जा सकता है।


~प.पू. महर्षि पुनिताचारीजी महाराज,
गिरनार साधना आश्रम, जूनागढ़

॥ हरि ॐ तत्सत् जय गुरुदत्त ॥
(प.पू. पुनिताचारीजी महाराज की ४५ साल की कठोर तपस्या के फल स्वरुप उन्हें भगवान दत्तात्रेय से साधको के आध्यात्मिक उथ्थान और मानसिक शांति के लिए प्राप्त महामंत्र)



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