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प्रश्न (६)

प्रश्न (६) : शरणागति का अर्थ क्या है ?

प.पू. महर्षि पुनिताचारीजी महाराज:

नौ प्रकार की भक्ति में उल्लेख की गई एक या अधिक विधियों में श्रद्धा और विश्वास रखकर दृढ़ निश्चयपूर्वक सद्गुरु अथवा भगवान में ही निरंतर मग्न रहने की क्रिया को "शरणागति" कहते है । ये नौ प्रकार की विधियां नीचे दी गई है ।

श्रवण, विष्णु भगवान का कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, पूजन, अर्चन, दास्यपन , सख्यम् और आत्मनिवेदन ।

सद्गुरु की महिमा का श्रवण करना, उनकी महिमा का गुणगान करना, प्रत्येक क्षण उनके बारे में ही सोचना, अपनी चिंताओं से मुक्त रहकर प्रत्येक क्षण उनके ही चरणों में लीन रहना, उनके लिए प्रेम-भाव व्यक्त करना और स्वयं को उनके चरणों में न्योछावर कर देना । यही नौ प्रकार की भक्ति और विधि है । इनमें से एक या अधिक प्रकार की भक्ति श्रद्धा और विश्वासपूर्वक करने से सदगुरु के प्रति पूर्ण शरणागति की प्राप्ति हो जाती है ।

महामना संत श्री तुलसीदास द्वारा रचित 'श्री रामचरितमानस' में नौ प्रकार की भक्ति का वर्णन लगभग इसी प्रकार से किया गया है । भगवान श्री रामचन्द्रजी शबरी भील को भक्ति के नौ प्रकार इस प्रकार समझाते है ।

नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं।
सावधान सुनु धरु मन माहीं॥

प्रथम भगति संतन्ह कर संगा।
दूसरि रति मम कथा प्रसंगा ॥४॥
गुर पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान।
चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान ॥३५॥
मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा ॥
छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा ॥१।।
सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा ॥
आठवँ जथालाभ संतोषा। सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा ॥२॥
नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हियँ हरष न दीना ॥
नव महुँ एकउ जिन्ह कें होई। नारि पुरुष सचराचर कोई ॥३॥
सोइ अतिसय प्रिय भामिनि मोरें। सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरें ॥
(श्री रामचरितमानस - अरण्य काण्ड)

सत्संग और प्रभु की कथाएं सुनने में प्रेम दिखाना, अहंकार रहित होकर गुरु के चरण कमल की सेवा करना, प्रभु के गुणगान गाना, श्रद्धा और विश्वासपूर्वक गुरु मंत्र का जप करना, इन्द्रिय निग्रह और सतधर्म का पालन करना, हानि - लाभ या मान - अपमान में समताभाव रखकर संतोष धारण करना, दूसरों के दोषों को न देखना, निष्पाप और निष्कपट होकर व्यवहार करना, प्रभु के उपर पूर्ण श्रद्धा रखकर जीवन व्यतीत करना - यह भक्ति के नौ प्रकार है। इस सृष्टि में इसमें से एक भी प्रकार की भक्ति जिसमें होगी वह भगवान को अत्यंत प्रिय होगा ।

इस प्रकार से सद्गुरु की शरणागति प्राप्त हो सकती है ।


~प.पू. महर्षि पुनिताचारीजी महाराज,
गिरनार साधना आश्रम, जूनागढ़

॥ हरि ॐ तत्सत् जय गुरुदत्त ॥
(प.पू. पुनिताचारीजी महाराज की ४५ साल की कठोर तपस्या के फल स्वरुप उन्हें भगवान दत्तात्रेय से साधको के आध्यात्मिक उथ्थान और मानसिक शांति के लिए प्राप्त महामंत्र)



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