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प्रश्र (१५)

प्रश्र (१५) : इस मंत्र के अनुष्ठान में बावन की संख्या का महत्व क्या है ?

प.पू. महर्षि पुनिताचारीजी महाराज:

महापुरुष, विद्वान साधना में वर्णमातृका पे अधिक भार देते है । एक-एक शब्द ब्रह्म का स्वरूप है । इसलिए लगता है कि, बावन अक्षर की वर्ण मातृकाओंको एक-एक माला के जप का फल अर्पण करते हुए सुमेरु या मेरूदंड की ओर गति करनी है । यह जप और स्मरण कुंडलिनी जागृति के साथ भौतिक और आध्यात्मिक कार्य की सिद्धि के लिए, जीवन की हर एक शुभ-संकल्पो की सफलता के लिए महापुरूषो ने बताया है । बाकी तो संतों और शास्त्रों की महिमा अपरंपार है । जिज्ञासु जितनी मेहनत करेंगे, जितनी ख़ोज करेंगे, उतने विभिन्न शंका-समाधान रूपी रत्न प्राप्त होंगे ।


~प.पू. महर्षि पुनिताचारीजी महाराज,
गिरनार साधना आश्रम, जूनागढ़

॥ हरि ॐ तत्सत् जय गुरुदत्त ॥
(प.पू. पुनिताचारीजी महाराज की ४५ साल की कठोर तपस्या के फल स्वरुप उन्हें भगवान दत्तात्रेय से साधको के आध्यात्मिक उथ्थान और मानसिक शांति के लिए प्राप्त महामंत्र)



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