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प्रश्र (१३)

प्रश्र (१३) : सद्शिष्य जब भी गुरु एवं इष्ट का स्मरण करता है, तो क्या गुरु और इष्ट की हाजरी उसे महसूस होती होगी ?

प.पू. महर्षि पुनिताचारीजी महाराज:

सद्गुरु तत्त्वो, गुणों, प्रकृति, अंतःकरण चतुष्टय से पर, व्यापक परब्रह्म स्वरूप चैतन्य तत्त्व है । वे अनेक स्थूलधारी गुरुओं के द्वारा अनेक शिष्यों के हृदय को स्पर्शते होते हैं, जब भी जहां पर कोई भी सद्शिष्य मंत्रजप करते हुए, अपने इष्ट का स्मरण करता है, या अपने गुरु का स्मरण करता है, तब वहां सद्गुरु एवं इष्ट की सूक्ष्म हाजरी होती ही है । कभी घ्यान में दृश्यात्मक रूप में या कभी वायु के स्पर्श के स्वरूप में तो कभी मधुर सुगंध के रूप में, तो कभी अंत:चेतना के आनंद स्वरूप में हाजरी महसूस होती‌ रहती है ।


~प.पू. महर्षि पुनिताचारीजी महाराज,
गिरनार साधना आश्रम, जूनागढ़

॥ हरि ॐ तत्सत् जय गुरुदत्त ॥
(प.पू. पुनिताचारीजी महाराज की ४५ साल की कठोर तपस्या के फल स्वरुप उन्हें भगवान दत्तात्रेय से साधको के आध्यात्मिक उथ्थान और मानसिक शांति के लिए प्राप्त महामंत्र)



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