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साधना मतलब ?

वेदों, शास्त्रो, पुराणों, संत-महापुरुष बार-बार आत्म कल्याणार्थ साधना-उपासना पे जोर देते है । महापुरुषों के सत्संग में से जो कुछ भी याद है उसका सार इधर दे रहा हूँ -

१) साधना का मतलब है खुदको सदा तत्वों, गुणों ,प्रकृति और अंतःकरण से अलग आत्म स्वरूप में रख के देहाध्यास भुलने का प्रयास ओर सतत एक हि चैतन्य ब्रह्म की झांकी का प्रयास ।

२) साधना मतलब विविध विषयों विकारों मै उलजी हुई इंद्रियों को, मन को, प्रेम से, सत्संग से, ज्ञान से समझाते हुए क्षणिक सुख और नश्वर चीज़ों में आसक्ति का त्याग कराते हुए सावधानी से सात्विक-शुद्व बुद्धि के सहारे धैर्य और संतोष के साथ लक्ष्य की ओर चलते रहना ।

३) साधना मतलब भवसागर के अंदर संकल्प-विकल्प रूपी विविध तरंगों के बीच में कुशल तैराक के जैसे मन को समझाकर सुरक्षापूर्वक तैरके किनारे आने का प्रयास ।

४) साधना मतलब मनमोहक, आकर्षक भौतिक विविध क्षणिक सुखों मै आसक्ति का त्याग और सांसरिक व्यवहारिक सभी जिम्मेदारीओमें असंग और अलिप्त भाव से अपनी फरज अदा करते हुए स्वस्थ रहना ।

५) साधना मतलब नीति, नियम, सच्चाई और ईमानदारी से जीवनपथ पर चलते बीच-बीचमें उपस्थित सुख-दुःख को अपने किए हुए कर्मोका फल समझकर किसीपे दोषारोपण किये बिना प्रारब्ध भोगने के लिए ईश्वर के पास-सद्गुरु के पास सहन करने की शक्ति मांगना और सदा शरणागत भाव से गुरु मंत्र और गुरु चरण मैं श्रद्धा-विश्वास रखकर चलते रहना ।

६) साधना मतलब समस्त अयोग्य कर्म से खुदको बचाते हुए नाम, रूप, रंगवाली माया से सावधानी रखके माया के अंदर चैतन्य ब्रह्म की झांखी को देखते हुए अस्वस्थ इंद्रियोंको ज्ञान-बोध रूपी लकड़ी के सहारे लक्ष्य-पद की ओर ले जाना ।

७) साधना मतलब गुरु ओर ईष्ट से निरंतर सदबुद्धि की अपेक्षा, निष्काम सेवा, निरंतर एक ही ब्रह्म की झांखी ,अभेद दृष्टि, सबके प्रति निर्मल प्रेम, जीवन में शुद्ध प्रेम ओर सत्य का विकास ।

८) साधना मतलब निष्काम भावसे हरेक सत्कर्म करते हुए अनासक्ति । उपस्थिति रिद्धिओ-सिद्धओ, चमत्कारो, प्रतिष्ठा, ख्याति ओर साधना का त्याग या सदुपयोग ।

९) साधना मतलब गुरु ओर गुरु मंत्र में, ईष्ट और इष्ट मंत्र में किसी भी परिस्थितिमें अश्रद्धा या अविश्वास का अभाव और दृढ़ मनोबल के साथ स्वमार्ग मे चलते रहने का संकल्प ।

१०) साधना मतलब खुदको हंमेशा जाति, वर्ण, संप्रदायकी उपाधि में से मुक्त रखकर सतत "स्व" स्वरूप का चिंतन और राग-द्वेष-ईर्ष्यादि से पर रहके दुसरो का उत्थान, दूसरो का उत्कर्ष, दुसरो कि प्रशंसा सुनके आंनद प्राप्त करना और सबको ईश्वर क्षणिक सुखोंसे मुक्त करके शाश्वत सुख की तरफ ले जाए ऐसी शुभ इच्छा रखना ।

११) साधना मतलब समस्त बाह्य प्रवृत्तिओ का त्याग करके इन्द्रियोंको अंतर्मुख करके शांत गुफामें प्रवेश करके जो आंनद का अनुभव होता है उसकी जाग्रत अवस्था में सतत यादि और उसी स्थिति में सतत रहने का प्रयास ।

१२) साधना मतलब मन, चित्त, इंद्रियो को निर्मल ज्ञान गंगा में स्नान कराके, शुद्ध करके ईश्वरके चरणोंमे लगाने का या ईश्वरमय बनाने का प्रयास ।

१३) साधना मतलब भौतिक या आध्यात्मिक समस्त प्राप्त सुख और आनंदमें तब तक असंतोष रखना जब तक "स्व" स्वरूप की प्राप्ति न हो ।

१४) साधना मतलब अपने अनुरूप कार्य सिद्धि के अभाव में डगमगति श्रद्धा को ज्ञान के बल पर दृढ़ बनाकर शरणागत भाव से मंत्र और गुरु का स्मरण करते हुए अपने शुभ और नित्यकर्म को पकड़ रखना ।

१५) साधना मतलब - सद्गुरु जो स्थूल अवयवो से पर है, ब्रह्म स्वरुप है, अखंड व्याप्त है । वे सदा हमारे साथ ही है इस भाव से मंत्र जप, मनन, चिंतन आदि करना और नित्य अपने अंदर सद्गुरु या इष्टदेव का ध्यान धरना और परमशांति और परमानंद का संशोधन करना ।

मंत्र और इष्टदेव, मंत्र और गुरु में दृढ़ श्रद्धा, विश्वास न होने के कारण कभी भी साधना रूपी गाड़ी अटक जाती है इसीलिए इसबारे में साधको को सतत सोचते रहना चाहिए । इसीलिए वर्तमान समयमें दत्त, दत्तमंत्र और इसके साथ अपने इष्टदेव को पकड़के चलने का आग्रह रखता हूँ ।

इति शुभम् अस्तु


~प.पू. महर्षि पुनिताचारीजी महाराज,
गिरनार साधना आश्रम, जूनागढ़

॥ हरि ॐ तत्सत् जय गुरुदत्त ॥
(प.पू. पुनिताचारीजी महाराज की ४५ साल की कठोर तपस्या के फल स्वरुप उन्हें भगवान दत्तात्रेय से साधको के आध्यात्मिक उथ्थान और मानसिक शांति के लिए प्राप्त महामंत्र )



"मंत्र और इष्टदेव, मंत्र और गुरु में दृढ़ श्रद्धा, विश्वास न होने के कारण कभी भी साधना रूपी गाड़ी अटक जाती है इसीलिए इसबारे में साधको को सतत सोचते रहना चाहिए । इसीलिए वर्तमान समयमें दत्त, दत्तमंत्र और इसके साथ अपने इष्टदेव को पकड़के चलने का आग्रह रखता हूँ ।"
~प.पू. महर्षि पुनिताचारीजी महाराज



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