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अनुसूयामाता के पास "दिगंबर" स्वरूप में भिक्षा की मांग का रहस्य

समग्र विश्व के सभी घर्मगुरूओ में पूजनीय पदवी सद्गुरु की है । वर्तमान कल्प ( १ कल्प = ४ अरब ३२ करोड़ साल) में इस पदवी पर सद्गुरु दत्तात्रेय भगवान शोभायमान है । भगवान दत्तात्रेय की जीवन लीलाएँ बहुत ही विलक्षण होती है, मानवी बुद्धि के लिए तो अगम्य होती है, सिर्फ शरणागत भाव से ही थोड़ा सा समझा जा सकता है या वह जितना बताना चाहे उतना ही जान सकते हैं ।

सोई जानै जेहि देहु जनाई, जानत तुम्हहि होई जाई ।। (रामचरितमानस-अयोध्याकांड)

श्री दत्तात्रेय भगवान के अवतरण का रहस्य गूढ़ है । आश्रममें आए हुए एक विदेशी ने प्रश्न पूछा कि - अनसूया माता के पास ब्रह्मा- विष्णु-महेशने भिक्षु रूप में आकर दिगंबर रूपमें ही भिक्षा दो ऐसी मांग क्यों की ? कोई परपुरुष भी परस्री के पास ऐसी मांग न करे जबकि यहां तो सृष्टि कर्ता- पालन कर्ता -संहार कर्ता खुद परमात्मा ही ऐसी विचित्र मांग करते हैं, ऐसी अजीबोगरीब मांग का रहस्य क्या है ?

शास्त्रों में समाधि भाषा होती है । तीनों देव "दिगंबर" स्वरूप में भिक्षा की मांग कर रहे हैं । कई लोग "दिगंबर" का अर्थ 'नग्न' करते हैं, वह अयोग्य है। "दिगंबर" मतलब - दिशाएं जिनके वस्त्र है वह । अर्थात् - व्यापक स्वरूप । तीनों देव अनुसूया माँ की परीक्षा लेने आए थे । तीनों देवों को पता था कि - अनुसूया माँ ब्रह्मवादिनी है, इसलिए जगत को बोध देने के लिए इस प्रकार की मांग करते हैं । अनुसूया माँ अपना स्वरूप इतना विराट बना लेते हैं कि तीनों देव उनके समक्ष छोटे बच्चे जैसे लगते हैं ।

योग शास्त्र अनुसार साधक साधना पथ पर यात्रा करता है तब कुंडलिनी शक्ति विभिन्न चक्रों से पसार होकर आज्ञा चक्र से होकर अंत में सहस्त्राधार में समाहित होती है । आज्ञा चक्र को कई लोग काशी-वाराणसी, गुरु पादुका स्थान या अवध कहते हैं । गुरु कृपा से कुंडलिनी शक्ति आज्ञा चक्र तक पहुंचे उसको साक्षात्कार तो हो जाता है लेकिन साक्षात्कार करवाने वाले कोन ? उसका जवाब है - सहस्राधार में बिराजमान सदगुरु । सदगुरु की कृपा से साक्षात्कार होता है मगर उसकी यात्रा अभी भी बाकी है । हिरण्यगर्भ, महामाया चक्र इत्यादि चक्रों में से गुजर ने के बाद सहस्त्राधार आता है । दूसरे शब्दों में ऐसा कह सकते है कि - निरंजन निराकार परब्रह्म परमात्मा को साकार रूप लेकर पृथ्वी पर पधारना पड़ता है तब महामाया इत्यादि का आसरा लेना पड़ता है । संक्षिप्त में, निराकार साकार रूप धारण करते हैं वह दर्शाने के लिए ही यह कथा लाक्षणिक में प्रस्तुत कि गई है ।


~प.पू. महर्षि पुनिताचारीजी महाराज,
गिरनार साधना आश्रम, जूनागढ़

॥ हरि ॐ तत्सत् जय गुरुदत्त ॥
(प.पू. पुनिताचारीजी महाराज की ४५ साल की कठोर तपस्या के फल स्वरुप उन्हें भगवान दत्तात्रेय से साधको के आध्यात्मिक उथ्थान और मानसिक शांति के लिए प्राप्त महामंत्र )



"शास्त्रों में समाधि भाषा होती है । तीनों देव "दिगंबर" स्वरूप में भिक्षा की मांग कर रहे हैं । कई लोग "दिगंबर" का अर्थ 'नग्न' करते हैं, वह अयोग्य है। "दिगंबर" मतलब - दिशाएं जिनके वस्त्र है वह । अर्थात् - व्यापक स्वरूप । निरंजन निराकार परब्रह्म परमात्मा को साकार रूप लेकर पृथ्वी पर पधारना पड़ता है तब महामाया इत्यादि का आसरा लेना पड़ता है । संक्षिप्त में, निराकार साकार रूप धारण करते हैं वह दर्शाने के लिए ही यह कथा लाक्षणिक में प्रस्तुत कि गई है ।" ~प.पू. महर्षि पुनिताचारीजी महाराज



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